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2024 इस्‍लामिक कैलेंडर: जानें वर्ष 2024 में पड़ने वाले इस्‍लामिक अवकाशों के बारे में

Author: | Last Updated: Wed 9 Aug 2023 2:48:00 PM

2024 इस्‍लामिक कैलेंडर में मुस्लिम धर्म के आध्‍यात्मिक, सांस्‍कृतिक और पारंपरिक त्‍योहारों एवं अवकाशों की जानकारी दी गई है। यह पवित्र कैलेंडर चंद्रमा की स्थिति के अनुसार चलता है जो मुसलमानों को समय को लेकर एक अलग नज़रिया प्रदान करता है और उन्‍हें अपने इतिहास और धर्म के नियमों से जोड़ता है। यह मुसलमानों को उनके सदियों पुराने इतिहास और धर्म से जोड़ता है। पैगंबर मुहम्‍मद के मक्‍का से मदीना आने के बाद 1446 हिजरी से मु‍सलमानों की जिंदगी की एक नई शुरुआत हुई थी और यहीं से इस्‍लामिक कैलेंडर भी शुरू हुआ था।

2024 इस्‍लामिक कैलेंडर

इस्‍लामिक कैलेंडर को हिजरी या इस्‍लामिक चंद्र कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है और यह दुनियाभर के मुसलमानों के लिए बहुत महत्‍व रखता है। चंद्र चक्र पर आधारित इस कैलेंडर में धार्मिक अनुष्‍ठानों की जानकारी दी गई है लेकिन इसके साथ ही कैलेंडर सांस्‍कृतिक और सामाजिक ढांचे की तरह भी काम करता है। इस्‍लामिक कैलेंडर में वर्ष 2024 में मुस्लिम समुदाय में पड़ने वाले सभी त्‍योहारों की सूची दी गई है। हिजरी या इस्‍लामिक कैलेंडर मुस्लिम धर्म में बहुत महत्‍व रखता है। हर मुसलमान के घर में इस्लामिक कैलेंडर होता है जो उन्‍हें उनके धर्म के महत्‍वपूर्ण धार्मिक और सांस्‍कृतिक त्‍योहारों और पर्वों की तिथि बताता है।

Read Here In English: 2024 Islamic Calendar

इस्‍लामिक कैलेंडर में हिजरी कैलेंडर को अधिक महत्‍व दिया जाता है क्‍योंकि इसमें इस्‍लाम धर्म के महत्‍वपूर्ण अवकाशों और घटनाओं को शामिल किया जाता है। इसे मुस्लिम कैलेंडर, अरबी कैलेंडर और लूनर हिजरी कैलेंडर भी कहा जाता है। इस कैलेंडर में महीने के शुरू और खत्‍म होने की जानकारी चंद्रमा के चरणों के आधार पर दी गई है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में आमतौर पर 12 महीने होते हैं जिनमें 365 से 366 दिन होते हैं लेकिन 2024 इस्‍लामिक कैलेंडर में 354 से 355 दिन होते हैं। पैगंबर मुहम्‍मद के मदीना आने के बाद इस कैलेंडर की शुरुआत हुई थी और इसका श्रेय खलीफा उमर इब्‍न अल-खत्ताब को जाता है।

अन्‍य कैलेंडरों में खगोलीय वर्ष के अनुरूप होने के लिए हर 100 साल में लीप ईयर या महीनों का उपयोग किया जाता है लेकिन इस्‍लामिक कैलेंडर में इस तरीके का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस्‍लामिक वर्ष में हर 100 साल में 11 दिन कम होते हैं जो इस कैलेंडर को कृषि कार्यों के लिए अनुपयुक्‍त बनाता है। इस वजह से कई म‍ुस्लिम देशों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ सामाजिक और रोज़मर्रा के कामों के लिए हिजरी प्रणाली का उपयोग किया जाता है।

2024 इस्‍लामिक कैलेंडर: इस्‍लामिक महीनों के नाम

  • मुहर्रम: साल का पहला महीना
  • सफर (सफर-उल-मुजफ्फर): कुरैश के अत्‍याचार से बचने के लिए मुसलमानों ने मदीना में शरण ली।
  • रबी-उल-अव्‍वल: पवित्र पैगंबर के जन्‍म, हिजरत और उनके निधन का महीना
  • रबी-अल-थानी: साल का चौथा महीना
  • जुमदा-अल-उला: इस महीने में पैगंबर ने सय्यदा खदिजा से निकाह किया था।
  • जुमदा-अल-अखिराह: यह शुष्‍क मौसम के आखिरी महीने का प्रतीक है।
  • रजब: इस महीने में पैगंबर ने इसरा-मिराज की यात्रा की थी।
  • शबन: इस महीने की 15 तारीख को शब-ए-बारात (क्षमा की रात) होती है।
  • रमज़ान: यह महीना पवित्र कुरान की शुरुआत का प्रतीक है और इस महीने में मुसलमान 30 दिनों तक रोज़ा रखते हैं।
  • शव्‍वाल: इस महीने की पहली तारीख को ईद-उल-फितर मनाई जाती है।
  • धुल-कदाह: यह चार पवित्र महीनों में से एक है।
  • धलु-हिज्‍जाह: इस पूरे महीने में हज यात्रा की जाती है और महीने की 10 तारीख को ईद-उल-अधा मनाई जाती है।

2024 इस्‍लामिक कैलेंडर का इतिहास और महत्‍व

लगभग 637 ईसा पूर्व दूसरे खलीफा उमर ने कुछ उपलब्धियां हासिल की थीं जिसमें 2024 इस्‍लामिक कैलेंडर का निर्माण भी शामिल है। आप सोच रहे होंगे कि उन्‍होंने आम कैलेंडर का उपयोग क्‍यों नहीं किया और मुस्लिम धर्म के लिए इस विशेष कैलेंडर को क्‍यों बनाया। 622 ईसा पूर्व एक अद्वितीय घटना के कारण पैगंबर मुहम्‍मद को मक्‍का से मदीना आना पड़ा था। उनका यह कदम इस्‍लाम धर्म को सुरक्षित रखने के लिए एक महत्‍वपूर्ण बलिदान के रूप में जाना जाता है। इसलिए पैगंबर के मक्‍का से मदीना आने पर उमर ने कहा था 'यहां से हमारे कैलेंडर की शुरुआत होनी चाहिए।' उन्‍होंने कहा कि पैगंबर के स्‍थानांतरण ने एक नई शुरुआत की है और झूठ को सच से शुद्ध कर दिया है।

वह हिजरी वर्ष मु‍सलमानों को उनके धर्म की रक्षा के लिए पैगंबर द्वारा किए गए बलिदान की याद दिलाता है। उन्‍होंने इस्‍लाम धर्म के लिए मार्ग बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। हिजरी कैलेंडर का उपयोग करना, टाइम मशीन में देखने जैसा है। इससे हम अपने अतीत में झांक सकते हैं, उससे सीख सकते हैं और अल्‍लाह के करीब रह सकते हैं। 2024 इस्‍लामिक कैलेंडर में सिर्फ मुस्लिम त्‍योहारों की तारीखें ही नहीं हैं बल्कि यह एक ऐसा मानचित्र है जो हमें हमारे धर्म से जोड़ने का काम करता है। अब जब भी आप अगली बार हिजरी कैलेंडर देखें, तो याद रखें कि इसके ज़रिए आप अपने धर्म के इतिहास, प्रेरणा और बलिदान को छू रहे हैं।

2024 इस्‍लामिक कैलेंडर: इस्‍लामिक त्‍योहारों की तिथि और घटनाएं

देखिए 2024 इस्‍लामिक कैलेंडर में क्‍या है:

त्‍योहार

हिजरी तारीख

ग्रगोरियन तारीख/दिन

जमदा-अल-अखिराह की शुरुआत

1 रजब 1445 एच

13 जनवरी, 2024, शनिवार

इस्रा मिराज

27 रजब 1445 एच

08 फरवरी, 2024, बृहस्‍पतिवार

शबान की शुरुआत

01 शबान 1445 एएच

11 फरवरी, 2024, रविवार

निस्‍फु शबान

15 शबान 1445 एएच

25 फरवरी, 2024, रविवार

रमदान की शुरुआत

01 रमदान 1445 एएच

11 मार्च, 2024, सोमवार

रमदान में रोज़े की शुरुआत (30 दिनों का रोज़ा)

01 रमदान 1445 एएच

11 मार्च, 2024, सोमवार

नुजुल-उल-कुरान

17 रमदान 1444 एएच

08 अप्रैल, 2024, शनिवार

लालयत-उल-कादर

27 रमदान 1444 एएच

18 अप्रैल, 2024, मंगलवार

शव्‍वाल की शुरुआत

01 शव्‍वाल 1444 एएच

21अप्रैल, 2024, शुक्रवार

ईद-उल-फितर

01 शव्‍वाल 1444 एएच

21अप्रैल, 2024, शुक्रवार

पवित्र महीने धुल-कदाह की शुरुआत

01 धुल-कदाह 1445 एएच

09 मई, 2024, बृहस्‍पतिवार

पवित्र महीने धुल-हिज्‍जाह की शुरुआत

01 धुल-हिज्‍जाह 1445 एएच

07 जून, 2024, शुक्रवार

वक्‍फ़ इन अराफत (हज)

09 धुल-हिज्‍जाह 1445 एएच

15 जून, 2024, शनिवार

ईद-उल-अज्‍हा

10 धुल-हिज्‍जाह 1445 एएच

16 जून, 2024, रविवार

तशरीक के दिन

11, 12, 13 धुल-हिज्‍जाह 1445 एएच

17 जून, 2024, सोमवार

मुहर्रम की शुरुआत

01 मुहर्रम 1446 एएच

07 जुलाई, 2024, रविवार

इस्‍लामिक नव वर्ष

01 मुहर्रम 1446 एएच

07 जुलाई, 2024, रविवार

आशूरा रोज़ा

10 मुहर्रम 1446 एएच

16 जुलाई, 2024, मंगलवार

सफर की शुरुआत

01 सफर 1446 एएच

05 अगस्‍त, 2024, सोमवार

रबी-उल-अवल की शुरुआत

01 रबी-उल-अवल 1446 एएच

04 सितंबर, 2024, बुधवार

पैगंबर का जन्‍मदिन

12 रबी-उल-अवल 1446 एएच

15 सितंबर, 2024, रविवार

रबी-उल-थनी की शुरुआत

01 रबी-उल-थनी 1446 एएच

01 अक्‍टूबर, 2024, शुक्रवार

जमदा-उल-उला की शुरुआत

01 जमदा-उल-उला 1446 एएच

03 नवंबर, 2024, रविवार

जमदा-उल-अखिराह की शुरुआत

01 जुमदा-उल-अखिराह 1446 एएच

02 दिसंबर, 2024, सोमवार

2024 इस्‍लामिक कैलेंडर: सप्‍ताह के इस्‍लामिक दिनों की सूची

इस्‍लामिक सप्‍ताह में बहुत कुछ रोचक है। इसमें दिन की शुरुआत तब होती है, जब शाम ढलने पर पूरा आसमान रंगीन हो जाता है। मुस्लिम दिन की शुरुआत सूरज के ढलने और तारों के चमचमाने पर होती है लेकिन शुक्रवार का दिन ज्‍यादा चमत्‍कारिक होता है। इस दिन दुनियाभर के मुसलमान मस्जिद जाकर दुआ मांगते हैं। शुक्रवार से ही मुसलमानों के सप्‍ताह की शुरुआत होती है जिस पर सभी लोग जुम्‍मे की नमाज़ के लिए इकट्ठे होते हैं। यह चंद्र अवकाश की तरह होता है। कई मुस्लिम देशों में शुक्रवार और शनिवार या बृहस्‍पतिवार और शुक्रवार को सप्‍ताहांत रहता है। इस्‍लाम में सप्‍ताह में निम्‍न दिन होते हैं:

  • अल-अजहद: रविवार
  • अल-इथनायन: सोमवार
  • अथ-थुलाथा: मंगलवार
  • अल-अरबी अ: : बुधवार
  • अल खामिस: बृहस्‍पतिवार
  • अल-जुम अह: शुक्रवार
  • अस सब्‍त: शनिवार

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2024 इस्‍लामिक कैलेंडर: इस्‍लाम में प्रमुख त्‍योहार और अवकाश

वर्ष 2024 में इस्‍लाम में निम्‍न प्रमुख त्‍योहार पड़ रहे हैं:

शब-ए-बारात: (क्षमा की रात)

शब-ए-बारात या क्षमा की रात इस्‍लामिक कैलेंडर में बहुत महत्‍व रखती है। शब्‍बान महीने की 15 तारीख को दुनियाभर के मुसलमान अल्‍लाह से अपनी गलतियों की माफ़ी मांगते हैं। इस रात को अपने मरे हुए या बीमार परिवारजनों के लिए भी दुआ मांगी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात अल्‍लाह भविष्‍य लिखते हैं।

सांस्‍कृतिक रीति रिवाज़ों में भिन्‍नता होने की वजह से दुनियाभर के मुसलमान अपने-अपने तरीके से इस त्‍योहार को मनाते हैं। अनेक समुदायों में शब-ए-बारात या क्षमा की रात को कई नामों से जाना जाता है। इसे चिराग-ए-बारात, बारात की रात, बेरात कंडिली और निस्‍फु सयाबन के नाम से भी लोग जानते हैं। इस्‍लामिक धर्म में इस रात का बहुत महत्‍व होता है। इस रात्रि को मुस्लिम धर्म के लोग अपने पूर्वजों की जगह क्षमा मांग सकते हैं और खुद को नर्क की यातनाओं से मुक्‍त कर सकते हैं।

रमदान (30 दिनों का रोज़ा)

रमदान के पवित्र महीने में मुस्लिम लोग अपनी आत्‍मा की शुद्धि और नैतिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए सूर्योदय से लेकर सूर्यास्‍त तक रोज़ा रखते हैं। आध्‍यात्मिक शुद्धि और खुद को अनुशासन में रखने के लिए यह एक शक्‍तिशाली अवसर होता है। इस काम में इस्‍लाम का पवित्र ग्रंथ कुरान अहम भूमिका निभाता है। मुस्लिमों का मानना है कि पैगंबर मुहम्‍मद ने रमदान के महीने में ही कुरान का उद्घाटन किया था। कुरान बनाने का अलौकिक संदेश उन्‍हें फरिश्‍ते गेब्रियल से आया था और तभी से कुरान मुस्लिम धर्म की आस्‍था की अटूट आधारशिला बन गई।

इस महीने में मुसलमान ईमानदारी और शालीनता से जीवन जीने के प्रति अपनी इच्‍छा और विश्‍वास प्रकट करते हैं। वे उन लोगों के लिए सहानुभूति रखते हैं जिनके पास जीवन के मूलभूत सुख नहीं हैं और दिन के समय भोग-विलास से दूर रहकर वे अल्‍लाह से अपने रिश्‍ते को सुधारने का प्रयास करते हैं। रमदान, इस्‍लामिक कैलेंडर का नौवां महीना है। यह महीना मुस्लिमों को अध्‍यात्‍म से जोड़ता है और उन्‍हें दया, इंसानियत और समर्पण की याद दिलाता है। एकसाथ रोज़ा रखकर मुसलमान इस्‍लामिक सिद्धांतों का पालने करने और अपने धर्म के प्रति समर्पण की घोषणा करते हैं।

जमात उल विदा (रमदान का आखिरी शुक्रवार)

रमदान के महीने के आखिरी शुक्रवार को जमात उल विदा कहते हैं जो मोक्ष और ईनाम पाने का अवसर है। इस दिन मुसलमान कई तरह के आध्‍यात्मिक कार्य और दान-पुण्‍य करते हैं। रमदान के इस शुक्रवार को हर मुसलमान कुरान की आयतों से धीरज और ज्ञान प्राप्‍त करने का प्रयास करता है। इस दिन दुआ मांगकर मुसलमान अल्‍लाह के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत करते हैं और अपने और अपने करीबियों की रक्षा के लिए अल्‍लाह से दुआ करते हैं।

जमात उल विदा में दूसरों की मदद और परोपकार करने का विशेष महत्‍व है। इस दिन मुसलमान दया और दान के कार्य करते हैं और गरीबों और जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं। गरीबों को खाना खिलाने जैसे कार्य इस्‍लामिक धर्म के सिद्धांतों के अनुसार दया और दान की भावना को प्रदर्शित करते हैं। मस्जिद में एकसाथ इकट्ठा होकर नमाज़ पढ़ने और दुआ करने से एकता और एक-दूसरे के लिए समर्पण की भावना को बढ़ावा मिलता है। इस दुआ में ना सिर्फ खुद के लिए मांगा जाता है बल्कि विश्‍व में सुख-शांति बनाए रखने की भी दुआ मांगी जाती है।

लायलत अल-कादर

दुनियाभर के मुसलमान इस त्‍योहार को धूमधाम से मनाते हैं। यह त्‍योहार उस रात का प्रतीक है जब पवित्र ग्रंथ कुरान की आयतें पहली बार पैगंबर मुहम्‍मद को सुनाई गई थीं। अंग्रेज़ी में लायलत अल-कादर को 'नाइट ऑफ पॉवर' कहते हैं। यह वाक्‍य इस इस्‍लामिक त्‍योहार की भव्‍यता को दर्शाता है। इस दौरान मुसलमान उस पवित्र समय को सम्‍मान देते हें जब पहली बार पैगंबर मुहम्‍मद को कुरान सुनाई गई थी।

फरिश्‍ते गैब्रियल ने इस शुभ रात्रि पर पैगंबर मुहम्‍मद के सामने धीरे-धीरे पवित्र कुरान का खुलासा किया था। इस्‍लामिक इतिहास में इस घटना को बहुत महत्‍वपूर्ण समझा जाता है और यह आस्‍था के जन्‍म और दिव्‍य शिक्षाओं का प्रसार करने का प्रतीक है। लायलत अल-कादर आशीर्वाद पाने, क्षमा करने और अल्‍लाह की कृपा पाने का समय है। इस दौरान मुसलमान अपनी इच्‍छाओं की पूर्ति और अल्‍लाह के नज़दीक जाने के लिए दुआ करते हैं। लायलत अल-कादर से मुसलमान उस दिव्‍य क्षण को सम्‍मान देते हैं जिसने उनके इस्‍लाम पर विश्‍वास को बढ़ावा दिया और कुरान में दी गई शिक्षा का प्रसार जारी रखा। इस दिन नमाज़ के लिए इकट्ठा होने वाले लोग दुनिया को बेहतर बनते देखने की दुआ मांगते हैं।

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ईद-उल-फितर (रमदान का खत्‍म होना)

मुसलमान रमदान के खत्‍म होने पर तीन दिनों तक ईद-उल-फितर मनाते हैं। इस्‍लामिक समुदाय में इस दिन कई रीति-रिवाज़ किए जाते हैं। ईद-उल-फितर पर मुसलमान रमदान के महीने में खुद को आध्‍यात्मिक प्रगति और अनुशासन में रखने के लिए अल्‍लाह का शुक्रिया करते हैं। इस पवित्र महीने के खत्‍म होने के आखिरी दिन सभी मुसलमान इकट्ठा होकर दुआ मांगते हैं जो कि उनके विश्‍वास और एकता को दर्शाता है।

इस दिन खूब स्‍वादिष्‍ट व्‍यंजन बनते हैं जिससे इस त्‍योहार का मज़ा और बढ़ जाता है। ईद-उल-फितर पर बनने वाले व्‍यंजनों से इस उत्‍सव का मज़ा और बढ़ जाता है। ईद पर बनने वाले पकवान रमज़ान खत्‍म होने पर आने वाली प्रचुरता और अल्‍लाह की कृपा का प्रतीक है। इस दिन घरों के आसपास लोग इकट्ठा होकर ईद मनाते हैं और सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं। ईद पर लोग एक-दूसरे से मिलते हैं और ईद की मुबारकबाद देते हैं जिससे वीरान सड़के भी जीवंत हो उठती हैं। ईद-उल-फितर एकता और एक-दूसरे के साथ जुड़ाव का प्रतीक है और इस दिन लोग इकट्ठा होकर इन्‍हीं चीज़ों को एक-दूसरे के साथ आतमसात करते हैं।

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ईद-उल-अधा (बकरीद)

ईद-उल-अधा को त्‍याग का उत्‍सव भी कहा जाता है और यह पर्व धु-अल-अज्‍जाह यानी इस्‍लामिक चंद्र कैलेंडर के दसवें महीने के दसवें दिन मनाया जाता है। यह दिन हज यात्रा के बाद आता है और चंद्रमा दिखने के बाद इसकी पुष्टि होती है। चंद्रमा पर निर्धारित यह रिवाज़ इस्‍लाम के पांच स्‍तंभों में से एक को दर्शाता है एवं हज यात्रा मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोगों का एक महत्‍वपूर्ण धार्मिक दायित्‍व है। चंद्र कैलेंडर के अनुसार ईद-उल-अधा हज यात्रा के पूरे होने के साथ ही आती है। इस्‍लामिक धर्म के कुछ नियमों को पूरा करने वाले मुसलमानोंं के लिए मक्‍का की यात्रा एक आध्‍यात्मिक दायित्‍व है और यह ईद-उल-अधा पर खत्‍म होती है।

इसमें तीन दिनों का अवकाश मिलता है जो कि हज यात्रा के तीसरे दिन से शुरू होता है। इब्राहिम द्वारा अपने बेटे की बलि देने की याद में इस त्‍योहार को मनाया जाता है। उनका यह त्‍याग आस्‍था और समर्पण को दर्शाता है। इस्‍लाम धर्म में बलिदान की भावना काफी गहराई से जुड़ी हुई है जो उनकी आस्‍था के प्रति उनके सपमर्ण की भावना को मज़बूत करती है। इस दिन दी जाने वाली कुर्बानी इस्‍लामिक समुदाय से जुड़ी होती है और इस्‍लामिक सिद्धांतों पर उनकी आस्‍था को दर्शाती है।

आशूरा (मुहर्रम का दसवां दिन)

आशूरा म‍ुस्लिम धर्म की महान शख्सियत को याद करने का एक शोकपूर्ण दिन है। साल में एक बार आने वाला यह त्‍योहार इस्‍लामिक कैलेंडर के पहले महीने या‍नी मुहर्रम के दसवें दिन मनाया जाता है। आशूरा के दिन शिया मुसलमान दुख और चिंता व्‍यक्‍त करते हैं। इस मुस्लिम त्‍योहार पर हुसैन इब्‍न अली की भयावह मौत को याद किया जाता है। वह इस्‍लामिक धर्म की महान शख्सियत थे जिन्‍हें 680 ईस्‍वी में करबाला की लड़ाई में मार दिया गया था। शिया मुसलमान आशूरा के दिन शोक मनाते हैं और हुसैन इब्‍न अली को याद कर के उनके और उनके परिवार के त्‍याग को सम्‍मान देते हैं। आशूरा की ऐतिहासिक घटनाएं हजरत मुहम्‍मद के पोते हजरत इमामा हुसैन के लिए बहुत महत्‍व रखती हैं। करबाला के मैदानों में हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार को बेरहमी से मार दिया गया था।

आशूरा का पालन इतिहास में इस अवधि में भाग लेने वाले लोगों द्वारा प्रदर्शित दृढ़ता, धैर्य और भक्ति की एक गंभीर याद के रूप में कार्य करता है। यह दिन मुसलमाानों के अपनी आस्‍था के साथ फिर से जुड़ने, बलिदान और साहस पर विचार करने और हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों के बलिदान के लिए है।

ईद-उल-मिलाद (पैगंबर मुहम्‍मद का जन्‍मदिवस और अंतिम विदाई का दिन)

ईद-उल-मिलाद को पैगंबर मुहम्‍मद के जन्‍म दिवस और अंतिम विदाई के रूप में जाना जाता है। यह ऐतिहासिक त्‍योहार पैगंबर मुहम्‍मद के जन्‍म और उनकी विरासत को सम्‍मान देने के लिए मनाया जाता है। सुन्‍नी मुसलमान रबी उल-अव्‍वाल के 12वें दिन और शिया मुसलमान इस महीने के 17वें दिन पर ईद-उल-मिलाद मनाते हैं।

इस त्‍योहार से मुसलमान पैगंबर मुहम्‍मद के जीवन और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को याद करते हैं। इसके साथ ही इस दिन दुआ और नात की जाती है जिससे आध्‍यात्मिक माहौल बनता है। अपने धर्म में दया की शिक्षा का अनुसरण करने वाले मुसलमान इस दिन गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान देते हैं।

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यह थी 2024 इस्‍लामिक कैलेंडर के बारे में संपूर्ण जानकारी। आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। इस लेख को पसंद करने एवं पढ़ने तथा एस्ट्रोकैंप से जुड़े रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !

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